इज़हार ए इश्क
है तू चांद ये जानता हूं मैं
मैं भी चकोर हूं कब जानेगा तू
है तू समंदर ये जानता हूं मैं
मैं भी नदी हूं कब जानेगा तू
मैं तो दीवाना हो गया हूं तेरी मोहब्बत में
मुझे अपना कब मानेगा तू।।
सुना है आजकल तुम भी
चुप चुप रहते हो
छुपाकर गम जुदाई का
हंसते रहते हो
कह दो अपने दिल की बात उससे
जिसे छुप छुपकर देखते रहते हो।।
कभी उतरकर नहीं देखा पानी में
किनारे से देखते रहते हो
बहती धारा को देखकर समंदर की
जाने क्या सोचते रहते हो
उतरकर ही पार होता है ये दरिया तो
दूसरों से तो यही कहते रहते हो।।
होंठों से कुछ नहीं कहते अब भी
आंखों से बाते करते हो
अपने दिल की बात उससे कहने से
जाने तुम क्यों डरते हो
है अभी भी समय, कह दो उससे
तुम उससे बेहद प्यार करते हो।।
इज़हार ए इश्क के बिना महबूब से
उसे पाने की तम्मना रखते हो
पछताओगे जो कोई बना देगा अपना उसे
क्यों दिल की बात दबाकर रखते हो
जान लो, वक्त किसी का इंतज़ार नहीं करता
फिर क्यों वक्त बर्बाद करते रहते हो।।