इजहार-ए-मोहब्बत
आँखें हैं या मय का प्याला
तुमने कैसा जादू डाला
यूँ तो हम पीते नहीं
फिर क्यों नशे मैं रहने लगे
अहसास नहीं दिन है या रात
क्या तुमसे मोहब्बत करने लगे
कैसा यह आलम है मेरा
उफ़्फ़ इन ज़ुल्फ़ों का घनेरा
आरज़ू है यह मेरी
हमसे आशिक़ी करो
आशिक़ाना दिल यह मेरा
अब तकल्लुफ़ ना करो
इस दिल की आवाज़ सुनो
हमसे दिल्लागी तो करो