इच्छा
मैं फिर आना चाहूँगीं
अम्माँ की डांट खाने
बाबू का प्यार पाने ,
मैं फिर …………………
रसोई में अम्माँ का आँचल थामने
उनके स्वाद को अपने हांथों में उतारने ,
मैं फिर …………………
अम्माँ को सता कर फिर से मनाने
नींद से जग कर उनके पैर दबाने ,
मैं फिर ………………..
बहनों के साथ रहने
भाई को साथ रखने ,
मैं फिर …………………
दोस्तों को प्यार देने
उनका बेशुमार प्यार लेने ,
मैं फिर …………………
दोस्तों से खेलने गुलाल
दोस्ती की देने मिसाल ,
मैं फिर ………………….
अपने बच्चों की माँ बनने
उनके मुहँ से फिर माँ सुनाने ,
मैं फिर …………………
अपनी बेटी की दोस्त बनने
उसकी उम्मीदों पे पूरा उतरने ,
मैं फिर ………………..
अपने बेटे को भावुकता से बचाने
समाज के हर पहलू को दिखाने ,
मैं फिर …………………
पति को प्रेमी बनाने
उसकी हर शंका को मिटाने ,
मै फिर ………………..
अधूरी ख्वाइशों को पूरा करने
तमन्नाओं को जी भरके जीने ,
मैं फिर ………………..
सज्जनों के साथ रहने
दुर्जनों के पास से भी बचने ,
मैं फिर ………………..
अपनी खूबियों को संवारने
कला को जी भर के निखारने ,
मैं फिर …………………
अपनी खरी – खरी बोली बोलने
सबको सच – झूठ के तराजू पर तोलने ,
मै फिर ………………..
अपनी गलतियों को सुधारने
दूसरों की गलतियों को नकारने ,
मै फिर ………………..
झूठे रिश्तों से बचने
सच्चे रिश्तों में जीने ,
मैं फिर ………………..
अपने अपनों को मनाने
अपने दुश्मनों को सताने ,
मैं फिर ………………..
अपने इसी मस्त अंदाज को जीने
फिर से धड्काने लोगों के सीने ,
मैं फिर ………………..
घूरती आँखों को झुकाने
ऐसों को और भी रूलाने ,
मैं फिर ……………….
इसी दबंगयियत से जीने
डर से बहाने लोगों के पसीने ,
मैं फिर ………………..
व्यंग बाणों पे हंसने
कसे तानों से बचने ,
मैं फिर ………………..
राम को शब्दों में ढालने
कृष्ण को आचरण में उतारने ,
मैं फिर ………………….
अधूरी भक्ति को करने
नारायण में पूर्ण रूप से रमने ,
मैं फिर ……………………
प्यार की हर बूँद पीने
थोड़ा सा खुद के लिए भी जीने !!
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 16 – 09 – 2013 )