इच्छा का सम्मान
पिता जी का दसवाँ-तेरहवीं करने के बाद जब एक -डेढ़ महीना बीत गया तो रामदीन और सुकेश ने आपस में सलाह-मशवरा करके यह निर्णय लिया कि पिता जी के खाते में जो लगभग पचास हज़ार रुपए हैं ,वे छोटी बहन सुनीता को दे दिए जाएँ। दोनों इस बात पर सहमत हो गए। उन्हें मालूम था कि पिता की संपत्ति पर जितना अधिकार उन दोनों भाइयों का है उतना ही बहन का भी। फिर छह माह पहले उनके बहनोई की एक दुर्घटना में मौत हो गई थी। एक छोटी बेटी है ,जिसकी उम्र चार साल है। बहन सुनीता के घर में कमाने वाला कोई नहीं है। इन रुपयों से उसकी थोड़ी मदद हो जाएगी।
सुरेश ने बहन सुनीता को फोन किया और बोला बहन क्या तुम कचहरी आ सकती हो, कुछ काम था।
सुनीता ने कहा,”ठीक है भैया आ जाऊँगी। बताओ कब आना है?”
“परसों आ जाना। लगभग 12 बजे।”
जब सुनीता कचहरी पहुँची तो रामदीन और सुकेश ने शपथ-पत्र बनवाए और बैंक में जाकर दिए और बैंक मैनेजर से कहा, “साहब हमारे पिताजी के खाते में जो पैसे हैं वे सब मेरी बहन सुनीता को दे दीजिए। मुझे कोई आपत्ति नहीं है।”
सुनीता ने कहा, “भैया आप लोग ये क्या कह रहे हैं? पिताजी के पैसे पर आप दोनों का अधिकार है; मेरा नहीं।”
“आप लोगों ने पिताजी का दसवां-तेरहवीं करने के लिए भी गांव के भोला से पैसे उधार लिए हैं।”
“उसकी चिंता तुम मत करो।हम लोग वह कर्जा धीरे-धीरे मेहनत-मजदूरी करके उतार देंगे।”
” हम दोनों भाई ये चाहते हैं कि ये पैसा तुम्हें दें। हमारे पास पिताजी का दो बीघा खेत भी तो है। एक- एक बीघा बाँट लेंगे। पिता जी कहा करते थे कि अपनी नातिन की शादी के लिए मुझे पैसे जोड़ने हैं। अब वे रहे नहीं तो उनकी आखिरी इच्छा तो उनके इन पैसों से ही पूरी करनी पड़ेगी।”
अपने भाइयों की बातें सुनकर सुनीता की आँखें गीली हो गईं और वह चुपचाप अपने भाइयों को देख रही थी।
डाॅ बिपिन पाण्डेय