इच्छाओं का
चलो आज कत्ल कर दें खुद की इच्छाओं का
बहुत परेशान करतीं हैं मुझे साँझ सबेरे और रातों में भी
दिन को दिन नहीं रहने देतीं और रात को रात नहीं।
उन्हें लगता है मेरे दिल में कोई जज्बात नहीं
बड़े दिन से सोच रहा था कि ऐसा कर ही दूं।
फिर सवाल आया कि, क्या सही है ये?
बिना सोए बेचैनी में कितनी रातें गुजरी हैं
ये मैं ही जानता हूँ बेहतर।
मेरे जज्बात मेरी इच्छाओं और भावनाओं को समझते हैं लोग कमतर।
मैं अपनी इच्छाओं को थोप दूँ किसके सर।
बुरे हालात में है कौन अब अपना रहबर ।
दिन और रात बस इसी ख़याल में बीत रहे है,
की क्या इच्छाएँ इस जनम में हो जाएंगी पूरी।
क्या कुछ पूरी होंगी और कुछ रहेंगी अधूरी।
ख़याल यही है कि अब कोई खयाल नहीं है।
जिंदगी में अब कुछ भी कमाल नही है।
-सिद्धार्थ