इच्छाएं…….
इच्छाएं…….
मेरी इच्छा है कि मैं चांद हो जाऊं ,
पर क्या फिर मैं आसमान की गुलाम हो जाऊं…..
नहीं मैं आकाश बनना चाहती हूं, जिसमें मैं सबको अपनी आगोश में ले आऊं,
इच्छाओं का क्या है ,
रोज अंधेरों से उठकर ,अंधेरों में खो जाती है कभी खुद को बेहद पसंद करवाती है,
कभी खुद ही से नफरत करवाती है,
कभी पूछती है ,तुम खुद जैसे क्यों ना रही कभी उन जैसा बनने को कहती है,
उन जैसी हुई जब मैं ……..
मुझे खुदगर्ज कहती है,
ऐसा जाल बनाकर बस इन्हीं बातों में,
मुझे उलझाए रखती है ,बिना जवाब वाले सवाल पूछ कर,
मेरी बेवकूफ ही से मेरा परिचय कराए रखती है…….
कभी हुसन ,रूप ,रंग से प्यार करवाती है, कभी दिलों में उत्तर चेहरे को बेनकाब करवाती है,
यह इच्छाएं बहुत अजीब है ,मुझे जगा कर खुद सो जाती है ….
इच्छाएं मरती नहीं जीने को मजबूर करती है……..