यूं उन लोगों ने न जाने क्या क्या कहानी बनाई,
पढ़े साहित्य, रचें साहित्य
परिचर्चा (शिक्षक दिवस, 5 सितंबर पर विशेष)
Why am I getting so perplexed ?
कठिनताओं की आवाजाही हीं तो, जीवन को लक्ष्य से मिलवाती है।
समीक्ष्य कृति: बोल जमूरे! बोल
यारो ऐसी माॅं होती है, यारो वो ही माॅं होती है।
सब कुछ कह लेने के बाद भी कुछ बातें दफ़्न रह जाती हैं, सीने क
दवाखाना से अब कुछ भी नहीं होता मालिक....
ज़िन्दगी में हर रिश्ते का,
छुप छुपकर मोहब्बत का इज़हार करते हैं,
नन्हे-मुन्ने हाथों में, कागज की नाव ही बचपन था ।
जगह-जगह पुष्प 'कमल' खिला;
गर बिछड़ जाएं हम तो भी रोना न तुम
अकेले मिलना कि भले नहीं मिलना।
हमें बुद्धिमान के जगह प्रेमी होना चाहिए, प्रेमी होना हमारे अ
हे राम तुम्हीं कण कण में हो।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"