#इक_सयाना_चाहता_हूँ
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मैं घरों घर इक सयाना चाहता हूँ।
फिर बुजुर्गों का .जमाना चाहता हूँ।।
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खो गये एकल जहाँ में सब के सब ही,
मैं सभी को घर … बुलाना चाहता हूँ।।
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चार दिन विश्वास के…रिश्ते न निभते।
जिंदगी सारी.. बिताना चाहता हूँ।।
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हर कदम तू संग चल मुझ पे यकीं कर,
संग तेरेे घर… बसाना चाहता हूँ।।
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चल नये युग का नया अंदाज भर ले।
मैं भरा पूरा घराना चाहता हूँ।।
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मुफ़लिसी भी मिट सके मेरे वतन में।
मुफ़लिसों का अब ठिकाना चाहता हूँ।।
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क्या भला औकात उसकी लूट भी ले।
मैं उसे अपनी दिखाना चाहता हूँ।।
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रब मुझे औकात से ज्यादा न देना।
मैं दिलों में रब बिठाना चाहता हूँ।।
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हो नुमाइश भी नहीं अब गीत में #जय।
सबके होठों नव तराना चाहता हूँ।।
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संतोष बरमैया #जय