इक सुकून आँखों में…
तेरे दिल से मेरे दिल को राह, होती भी रही
ये सच था मग़र, पाकर तुझे मैं खोती भी रही…
वो आ गया लेकर, जब ज़माने की नियामतें
एक सुकून आँखों में, उसके खोजती भी रही…
इक उम्र गुजार आए, जिसके इंतजार में हम
मुड़-मुड़ के उसी राह को, फिर देखती भी रही…
इसकदर तेरी खुशी जाने कब से, मैं बन गई
रखोगे क्या साथ हमेशा, अक्सर पूछती भी रही…
कभी लौट न जाना, सपने मुझे दिखाकर
मगर सदियों से हम तो साथ हैं, सोचती भी रही…
-✍️देवश्री पारीक ‘अर्पिता’