इक महल हो, सपनो का
आ चल, इक महल बनाते हैं, सपनो का
न ईंट , न सीमेंट, न बदरपुर, न सरिया
बस सपनो में रहना , बाहर न जाना
बाहर चला गया तो, पीछे पड़ जाएगी दुनिया !!
मन कितना आजाद होगा, न कोई पहरा होगा
वो सितारों सा आसमान, घर कितना न्यारा होगा
न चिक चिक , न कोई किसी परकार का झंझट
बस सपना वो सब से ज्यादा , सुनहरा ही होगा !!
मिलने आ जाना, जब दिल करे तेरा वहां
मिल बैठ कर वो सारी बातें, तू सुना जाना वहां
कम से कम दुनिया तो न होगी अपने सिवा वहां
कुछ कह जाना, और कुछ सुन जाना , आकर वहां !!
अरमानो का मखमल सा सुंदर वो बिस्तर होगा
किसी राजा की शयन कक्ष से , क्या वो कहीं कम होगा
सकूंन से रात गुजर जाएगी, बस वो सपना मेरा होगा
देखना तू जरूर, वो ख्याल इक दिन बस मेरा ही होगा !!
अजीत तलवार
मेरठ