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16 Jun 2022 · 1 min read

इक पिता से मत पूछना

पतझड़ में जो फूल खिला दे,
उस फूल की कीमत क्या होगी,
ये इक पिता से मत पूछना।

लहरों के जो विरुद्ध चले,
हिम्मत उसकी क्या होगी,
ये इक पिता से मत पूछना।

आंधियों से जो उखड़ ना सके,
उस दरख्त की कीमत क्या होगी,
ये इक पिता से मत पूछना।

झूठ के इस बाजार में जो सच ना झुके,
उस इंसान की कीमत क्या होगी।
ये इक पिता से मत पूछना।

हीरे मोती, सोना-चांदी से जो ना तुले,
उस शख़्स की शख्सियत क्या होगी,
ये इक पिता से मत पूछना।

अदभुत है किरदार उसका,
परिवार के सिवा नही सरोकार उसका।
बहुत गहराई है अंदाज-ए-बयां करना है मुश्किल,
किस हद तक गुजर जाये औलाद की खातिर,

ये इक पिता से मत पूछना,
इक पिता से मत पूछना।

कुमार दीपक “मणि”
(स्वरचित)

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