इक पल जो कभी ख़्वाबों में खो जाता हूॅं !
इक पल जो कभी ख़्वाबों में खो जाता हूॅं !
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इक पल जो कभी ख़्वाबों में खो जाता हूॅं !
फिर आनेवाले ग़म के आभास होने लगते !
जब कभी मैं आज ही में जीने लगता हूॅं !
तो सदा कल के परिणाम मुझे डराने लगते !!
हर मोड़ पे ही ज़िंदगी कितना विराम लगाती है !
ज़िंदगी की रफ़्तार पे यकायक ब्रेक लग जाती है!
चूॅंकि हर रास्ते ज़िंदगी के उतने सरल नहीं होते !
इसीलिए ये ज़िंदगी हमें रफ़्तार में चलने नहीं देते !!
सच है, मंज़िल तक का हर रास्ता काॅंटों से भरा है !
हर राह पे यत्र-तत्र गलत तत्वों का ही जमावड़ा है !
कहीं पे इंसान खड़े तो कई जगह होता सिरफिरा है!
तभी तो ज़िंदगी खुद ही देती हमें सदैव मशविरा है !!
इस ज़िंदगी में तो हर पल हमें सचेत रहना ही होगा !
खुशी के क्षण में भी अति उत्साहित न रहना होगा !
क्या पता ज़िंदगी का रुख कब कहाॅं करवट ले ले !
ख़्वाबों संग विचरण में भी कुछ चिंतन करना होगा !!
ज़िंदगी जितनी सरल सीधी दिखती उतनी ये है नहीं !
हर आने वाले पल इसकी लाती खबरें हैं कुछ नई-नई !
जरूरी नहीं कि वो खबर आपको सुकून का पल ही दे !
सदा गन्तव्य की ओर बढ़ते चलें करते सारे काम सही !!
मंज़िल मिल नहीं सकती यूॅं हसीं ख़्वाबों में खो जाने से!
क्या फूल ज़्यादा खिल जाते हैं भॅंवरों के यूॅं मंडराने से !
ख़्वाब तो होते हैं बस, जीवन में कुछ सपने सजाने के !
पर अंत में मेहनत व कर्म ही होते हथियार उन्हें पाने के!!
स्वरचित एवं मौलिक ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 08-08-2021.
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