“इक उम्र”
इक उम्र जी ली है,मैने तेरे बिना,
फ़िर भी कभी महसूस ही नहीं हुआ कि तू मुझसे दूर है।
*************
शिकवा करू तो किससे करू,
इस में ना मेरी खता ना तेरा कोई कसूर है।
*************
महफ़िल सजा आईं जाती हैं चिरागों से,
लेकिन इन्हीं चिरागों से जलने को पतंगें मज़बूर हैं।
*************
तेरी खातिर फरियाद भी नहीं कर सकता,
गेर क्या यहां तो अपने ही दौलत के नाशे में चूर है।
*************
इक उम्र जी ली है,मैने तेरे बिना,
फ़िर भी कभी महसूस ही नहीं हुआ कि तू मुझसे दूर है।