इक अदद बेटे की ख़्वाहिश में बेचारी कोख को।
ज़ुर्म में शिरकत किया तो उम्र भर ढोना पड़ा।
खून से अपने ही अपनी रूह को धोना पड़ा।
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तख़्त ताजों की हवस में बन गए शैतान हो।
और क्या मज़बूरियां थी जो जहर बोना पड़ा।
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जैसे तैसे करके उसने ब्याह तो निपटा दिया।
ही गया बेबस बेचारा बाप जब गौना पड़ा।
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दौलतों से मार खाई ख्बाब के परवाज़ ने।
चन्द रुपयों के लिए मन मार कर सोना पड़ा।
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मानता उनकी नीयत को जो लपक झुकते नहीं।
राह में पत्थर पड़ा हो चाहे हो सोना पड़ा।
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भूख उसके पेट की बन आग झुलसाने लगी।
सामने जब अन्न ले पत्तल गिरी दोना पड़ा।
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इक अदद बेटे की ख्वाहिश में बेचारी कोख को।
बेटियों के कत्ल में शामिल ” नज़र” होना पड़ा।