इक्कीसवीं सदी में मिलती नहीं मोहब्बत
इक्कीसवीं सदी में मिलती नहीं मोहब्बत
इस दौर की मोहब्बत बस जिस्म की ज़रूरत
औरों की भूल पर हम मुन्सिफ़ बने हमेशा
पर ख़ुद अगर ग़लत हो हम झाड़ते वकालत
हाँ इस जहान में हैं ढेरों मुसीबतें पर
सबसे बड़ी मुसीबत है बोलना हक़ीक़त
वो भी बहुत दुखी है अफ़सोस है मुझे भी
घर की लड़ाई में हम क्यों आ गए अदालत
हर इक ज़ुबान मीठी हर इक ज़ुबान प्यारी
उर्दू ज़ुबान में पर मीठी लगे शिकायत
इनती दुआ मेरी है इतनी सी इल्तिज़ा है
अल्लाह हम सभी को हर दम रखें सलामत
जॉनी अहमद ‘क़ैस’