इंसा बन जाये
उनको गुमां हो गया की अब वो खुदा हो गये है
उन्हें लगने लगा है कि अब वो औरों से जुदा हो गये हैं
कोई बताये उन्हें रहती नही शान सदा किसी की
मिट्टी से बने हैं तो मिट्टी में ही जाना है, फिर क्यूँ अकड़ दिखाना
गज का अभिमान एक छोटी चीटी चकनाचूर कर जाती
समय आने पर केले का तना भी उफनती नदियों से पार लगाती
हम इंसान इतनी बात समझ न पाते, झूठे बातों पर इतराते है
सूरज दूर रहकर भी सबको देता प्रकाश बराबर है
नदीयाँ, वन सब भेदों को मिटाकर समभाव सिखाती है
हम मानव होकर भी समझ नहीं पाते है, झूठे ही इतराते है
ऊचाई पाते ही अपनी पुरानी पहचान छुपाते है
अपनो से दुरी बनाते, चेहरे पर नया मुखौटा लगाते है
कोई कुछ ले न ले यही सोच घबराते है पर औरों पर इतराते है
कोई बता दे उन्हें चार कंधे लगगें उन्हें भी यहाँ
कह दे कोई सारे गुमां छोड़ दे, इंसा बन जाने पे जोड़ दे
खुदा बने न बने इंसान बन जाने पर जोड़ दे
इंसान बन जाने और इंसान कहलाने पे जोड़ दे