इंसाफ
बुझ रहीं हैं अब तो जल जल के मशालें भी
यूँ आँधियों से कब तक लड़ते चराग होंगे
कब तक रहेंगे फिरते इंसाफ की तलब में
कब तक लूटेगी अस्मत हम बेटियों की या रब
लाशों के ढेर चढ़ के करते हैं वो सियासत
ये मुल्क ए हुक्मरान हैं शैतान के परिस्तार
पाने को तो हुकुमत ये रूह बेच आए
ऐसे में कैसे कोई इंसाफ की आस लगाए