इंसाफ
मेरा बलात्कार मेरा जलना
कोयला बन सड़क पर पड़े रहना
इतना आसान नही है
मेरी पीड़ा को समझना ,
इस दरिंदगी को ना जाने
हैवानों ने कैसे किया होगा
ना मैं अकेली थी ना मैं पहली हूँ
इस दर्द को तुम्हें नही पता
हमने कैसे सहा होगा ,
मैं तो तड़पी थी
रूह तक तड़प रही है अभी
अन्यायी देखो मेरे
बेपरवाह बेखौफ हैं सभी ,
नाबालिगों को उम्र का बहाना देने से
सालों साल केस चलने से
दो चार को मारने से
ऐसे मिलेगी ठंडक हमारी रूहों को
हाथ में मोमबत्तियाँ ले कर चलने से ?
जैसे हम तड़पे थे
जा़र – ज़ार रोये थे
इनको भी तड़पाओ
खून के आँसू रूलाओ
पर मरने मत दो इतनी आसानी से
इन सब को तिल – तिल कर सड़ाओ ,
एक – एक दिन भारी हो इन पर
मौत भी ना तरसे जिन पर
इनकी पुश्तें भी ना सोचें ऐसा करने की
बनाओ कानून हमारी रूहों को खुश करने की ,
हम तो तड़प – तड़प कर सह गये
कुछ रह गये कुछ मर गये
पर तुम ऐसा जहां बनाओ
जहाँ तुम तो निडर खुश रह पाओ ,
तब ना जागे अरे ! अब तो जागो
कानून से ही कानून का हथियार मागों
हथियार ऐसा तेज़ हो
उसमें कानून का ही जंग लगा ना कोई पेंच हो ,
जिससे कानून की देवी का तराजू
ज़रा सा भी हिलने ना पाये
बिना हिल हुज्जत के
इस हथियार को चलाओ ,
फिर कानून के पैरवीदार
कुछ बोल ना पायेगें
अपने ही बनाये कानून पर
मूँह की खायेगें ,
आओ चलो सब इस हथियार को उठाओ
एक – एक कर इनको अंजाम तक पहुँचाओ
हमारे तड़पते जीस्म और रूहों को
तुम सब मिल कर सच्चा सूकूँ और इंसाफ तो दिलाओ ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 08/12/2019 )