इंसाफ : एक धोखा
कहने को बड़ा खूबसूरत लफ्ज है ये इंसाफ ,
धोखे की लिबास जो पहने हुए है ये इंसाफ ।
इसी खूबसूरती पर फना हुईं कई घायल रूहें ,
तमन्ना मचलती रही पाने को मगर इंसाफ ।
सारी उम्र गुज़र गयी,टूट -बिखर गयी जिंदगी ,
फिर भी मेहरबा ना हो सका येहरजाई इंसाफ ।
चंद रुपयों और सिफ़ारिशों पर फिदा होना था ,
कैसे किसी गरीब की झोली में गिरता इंसाफ?
बेटियों ने अस्मत खोयी, वालिदान ने औलाद,
और इनके दर्दों-गम से बेपरवाह हो रहा इंसाफ ।
तारीख पे तारीख,तारीख पे तारीख,बस तारीख !!
बस झूठी तसल्ली की तारीखें ही दे सका इंसाफ !
अब तो इस’ इंसाफ ‘ लफ़ज से बेज़ार हो चुके है हम ,
सच में बड़ा ही बदसूरत हैये बेवफा,बेमुरव्वत इंसाफ ।