इंसान ही रब है, जहां कुछ भी नहीं
ग़ज़ल: इंसान ही रब है, जहां कुछ भी नहीं
// दिनेश एल० “जैहिंद”
काफ़ : आँ स्वर
रदीफ़ : कुछ भी नहीं
वज्न : २२१२_२२१२_२२१२
ईमान से ज्यादा यहाँ कुछ भी नहीं !
इंसान ही रब है जहां कुछ भी नहीं !!
खामोश हैं सब बेजुबां अम्बर यहाँ,,
संसार तो चुप है बयाँ कुछ भी नहीं !!
ये लोग जाना चाहते हैं जिस जगह,,
धोका है नैनों का वहाँ कुछ भी नहीं !!
हर चीज थोड़े वक्त की खातिर उगी,,
बर्बाद हैं सबकुछ जवाँ कुछ भी नहीं !!
ये जिंदगी हर बार मिलती है कहाँ ?
है जिंदगी सब आसमाँ कुछ भी नहीं !!
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दिनेश एल० “जैहिंद”
28. 11. 2019