इंसान से बड़ा पत्थर नहीं
इंसान से बड़ा पत्थर नहीं
झूठ नहीं सच में ऐसा होता है।
पहाड़ भी क्यों न कितने टूटे
इंसान न टूट पाएगा।
कितनी भी गिर जाएँ बिजलियाँ
पर वो न कभी मिट पाएगा।
कितने भी आ जाए आकाल
पर वो न कभी सुख पाएगा।
कुछ भी क्यों न हो जाए
पर वो न कभी टूट पाएगा।
सूरज जब ताप बढ़ाएगा
फिर भी न वह जल पाएगा।
जब भी पवन लहराएगा
फिर भी न वो उड़ पाएगा।
धरती भी क्यों न हिल जाए
मानव न कभी हिल पाएगा।
कितनी भी विपदा आ जाए
पर मानव न गिर पाएगा।
कितने दुःख क्यों न आ जाए
किंतु वो सुख ही भोगेगा।
मानव ही ऐसा प्राणी है
हर हाल में जिसको जीना है।
चाहे जो कुछ भी हो जाए
मानव ही तो रह जाएगा।