इंसान की मनुष्य से अरदास
भले गरीब हैं अशक्त असहाय नही,
इंसान ही हैं
बस इतना सा संभलकर बोल लेना,
इंसाफ की जुर्रत नहीं है मुझे,
हो सके तो खुद को परख लेना,
मेरी मासूमियत से मत खेलना,
भविष्य तुम्हें चाहिये…
मुझे अपने वर्तमान पर छोड़ देना,
तुम्हारे कलह भले पोथी से जुड़े हों,
मुझसे ये उम्मीद मत करना ..
गर जरूरत हो तुम्हारे खुदा को
मेरे लहू से सींच लेना …
वरन् मेरे हिस्से का दूध मुझसे मत छीनना,
मैं भी इंसान हूँ…
बस इतना संभलकर बोल लेना….
नोट:- इंसान और मनुष्य वा आदमी शब्द अलग-अलग हैं तो फर्क भी स्वाभाविक है,
आदमी आदम से बना है..बोझ ढ़ोने वाला.
मनुष्य मन-रंजित ..बनाबटी/कथनी-करनी में फर्क.
इंसान एकदम प्राकृतिक ..बनावट रहित..
डॉ_महेन्द्र