इंसान की कितनी चाहतें
जब भूख लगती है तो इंसान खाने को भागता है
और प्यास लगती है तो पानी की तरह जाता है
हवस मिटानी होती है तो गलत राह को दौड़ता है
खून अंदर नहीं होता तो कत्ल की और भागता है !!
वाह रे इंसान तेरी मानसिकता कैसी है
कुछ पा नहीं पाता है तो छिनने को दौड़ता है
घर में तो तेरे भण्डार भरे हुए हैं फिर भी
पडोसी के घर कुछ मांगने को दौड़ता है !!
क्यूं नहीं लाता बदलाव अपने जीवन में सुधार का
कुछ अच्छा सा काम कर ले अपने जीवन आधार का
योनी तो आज मिली है, कल वापिस चली जाएगी
जैसे तू करता है न, ऐसे कभी जिन्दगी सुधर न पायेगी !!
भिखारी न बन, शैतान् न बन, इंसान है इन्सान बन
गैरों को अपना बना कर, देख तो बस महान बन
याद करे जमाना, तेरे जाने के बाद , था कोई ऐसा भी
उनके आंसूओं के सैलाब में “अजीत’ तेरा नाम हो ऐसा बन !!
अजीत तलवार
मेरठ