इंसान और रिश्ते
रिश्ते दर्द की चादर जैसे,
ओढ़े भी तो ओढ़ न पाते
दुनिया को कैसे समझाते
मन मे रख ली मन की बातें
दो पल साथ हमारे बैठो,
छोड़ो बातें यहां-वहां की
शब्दों की उलझन में उलझे
उम्र गवांई बहस-जिरह से।
बिन फेरों का अपना बंधन
बिन कसमों का साथ अगर हो
बिन रस्मों की प्रीत जो मानो
कालातीत बनें तब नाते।
ये संभव है मैं बोलूं तो
कुछ उत्तर तुम को मिल जाएं
लेकिन बिन बोले जब समझो
प्रीत के बंधन खुद बंध जाते।
एक आवरण छद्म स्मित का
खुद की बनाई लक्ष्मण रेखा,
मैं मृगतृष्णा मन मे रख कर
पार चली मरुथल दुनिया के।
समय की चक्की,आयु का गेहूं
घुन के जैसी जीवन तृष्णा
पिसते जाते, गिरते जाते
ग्रास नियति का बनते जाते।
दुनिया को कैसे समझाते
मन मे रख लीं मन की बातें।