इंसानो की कीमत न होती महंगी महंगी हाला है ।
सब कुछ गड़बड़ झाला है
भक्षक ही रखवाला है।
सच कोई कह ही न पाए
मुखपर पड गया ताला है ।
अब किससे उम्मीद बची है
सब कारनामा काला है ।
दवा नाम से बिकती है अब
बड़े नाम की हाला है।
राम नाम तो भूल ही बैठे
बनी झूठ की माला है ।
कांटे की अब चुभन न खलती
दिल में चुभता भाला है।।
इंसानो की कीमत न होती
महँगी महँगी हाला है।
विन्ध्य प्रकाश मिश्र विप्र