इंसानों से प्यारे गिद्ध
इंसानों से प्यारे गिद्ध।
आक्सीजन के साथ दवाई,
ये बेंच रहे कई गुने पर।
हैं इतने लालच में अन्धे,
साँसों के कातिल सौदागर।
इन इंसानों के जैसे क्या?
होते हैं हत्यारे गिद्ध-
इंसानों से प्यारे गिद्ध।
घूम गया है माथा भाई,
एम्बुलेंस का देख किराया।
इतना नीच हुआ है मानव,
मानव, मानव से शरमाया।
इनके जैसे कहाँ लगाते?
पैसों के ही नारे गिद्ध-
इंसानों से प्यारे गिद्ध।
अस्पताल में देकर दौलत,
पहले से ही कंगाल हुए।
शमशानों पर बढ़ी वसूली,
परिजन कितने बेहाल हुए।
इंसानों में स्वार्थ बहुत है,
जंगल के रखवारे गिद्ध-
इंसानों से प्यारे गिद्ध।
नहीं गिद्ध होता हत्यारा,
बस मरे हुए को खाता है।
पर्यावरण सुरक्षित करता,
यह शुद्ध वायु का दाता है।
मानव ने बस वन ही काटे,
चले गए वे सारे गिद्ध-
इंसानों से प्यारे गिद्ध।
– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 21/05/2021