इंसानियत
दोस्तों, इंसानियत पर कुछ भी लिखना मेरा पसंदीदा विषय रहा है, आज भी मेरी आंखों के सामने इंसानियत फिर से शर्मसार हुयी। दोस्तों आज दिल्ली मैटो् में यात्रा करते समय मेंने देखा कि एक वृध्द़ पुरूष भीड़ के चलते महिला सीट पर बैठ गया, कुछ ही स्टेशन के बाद देखा कि एक लड़की मैटो् में प्रवेश करती है, और उस वृध्द़ पुरूष को उंगली से महिला सीट की तरफ इशारा करते हुए उस पुरूष को उठा देती है, जैसा कि उस वृध्द़ व्यक्ति ने कोई जुर्म कर दिया हो? बेचारा चुपचाप उठ कर ख़डा़ हो गया,ये दृश्य देखकर मुझसे रहा नहीं गया, में पास की सीट से उठकर उस बूढे व्यक्ति को अपनी सीट पर बैठने को बोला, उस वक्त मेरी निगाह हर बैठे इंसान को टकटकी़ लगाए देख रही थी कि सारे लोग गर्दन झुकाये अपने फोन में बिजी,क्या आज हम अपने आराम और स्वार्थ में इतने लीन हो गये हैं कि इंसानियत को छोड़ के आगे बढ निकलना चाहते हैं, क्या सिर्फ महिला सीट रिजर्व होने से क्या आप का उसके ऊपर आपका अधिकार हो गया क्या?ये सिर्फ सुविधा है, आज कल के युवा और,नौकरी पेशे वाले इतने स्वार्थी हो गये कि कुछ पल अगर वो लोग खडे़ होकर यात्रा कर लेंगे तो क्या ज्यादा थक जायेंगे, या कुछ देर अपने मोबाईल में यूट्यूब, मूवी नहीं देख पायेंगे तो अनर्थ हो जायेगा?? नहीं ऐसा नहीं हैं, हम लोग अपने संस्कारों को भूलकर आज की भाग दौड़ भरी जिदंगी में इतने मद़मस्त हो चुके हैं कि मानव मूल्यों और भलाई के कार्य करने की पहल कर ही नहीं पाते,आज की सदी में जहां हर महिला, पुरूष की बराबरी की,और कन्धे से कन्धे मिलाकर चलने की बात जरूर करती हो, पर आज भी हम अपने अन्दर इंसानियत नाम का सोफ्टवेयर अपडेट़ नहीं कर पायें हैं, दोस्तों ये सब हमारे संस्कारों की ही देन होती है जहां उस लड़की ने उस बूढे़ को उठा दिया, जबकि कितनी बार मेंने खु़द सीट पर बैठे ही किसी भी महिला,वृध्द और असहाय लोगों को देखकर तुरंत अपनी सीट खाली की है,और हमेशा महिलाओं को वरीयता दी है, मेरा किसी भी महिला या पुरूष जाति विशेष पर कट़ाक्ष नहीं है,क्योंकि मेंने ऐसा पुरूषों के साथ भी महसूस किया है।