इंसानियत
इंसान इंसान कहाँ गई तेरी इंसानियत,
क्यो रौंद रहा, तुझसे शर्मसार कायनात,
मीठे शब्दों का क्यों पड़ रहा अकाल,
खो रहा संयम, स्वयं बन रहा काल,
देख जरा अपनी संस्कृति और विरासत,
तेरे कृत्य तुझको दिखा रहे आज हिरासत,
थोड़ा सा ही सही, तुम बरसा दो प्रेम स्नेह,
भविष्य भटक रहा गलियों में दिखाता देह,
खुशी ऊपर से नही अंतर्मन से मिलती ,
कली भी देख अलि को खुद खिलती,
प्रभात में लालिमा रवि बिखेरता,
निशा में शशि चांदनी फैलाता,
प्राकृति अपना कार्य निःस्वार्थ करती,
सदियों से यूँ ही हमे दुलार करती,
ओ मानव जगा अपनी मानवता,
दिखा समाज में तू अपनी नूतनता,
।।।जेपीएल।।।