” इंसानियत “
इंसानियत तब भी थी ,
इंसानियत आज भी है ।
पहले ज्यादा होती थी ,
आज थोड़ा कम है ।
ज़्यादा कुछ नहीं ,
बस जज्बातों का फर्क है ।
पहले बेवजह इंसानियत थी ,
आज फायदे की इंसानियत है ।
पहले मृत शरीर पर फुल चढ़ाना अंतिम बिदाई थी ,
आज मृत शरीर पर रूपए लुटाना पुण्य कमाने का मौका है ।
पत्थर की मूर्ति पर सोने की खाल चढ़ाते हैं ,
भूखे – नंगों को देख दूधकारते है ।
भरो का पेट छत्तीस भोग से भरते हैं ,
सेवा के नाम पर बेसहारों के पेट काट के खुद अपनी जेब भरते हैं ।
वाह रे ! इंसानियत का ढोंग ,
पहले इंसानियत के किरदार थे ,
आज किराए की इंसानियत है ।
? धन्यवाद ?
✍️ ज्योति ✍️
नई दिल्ली