इन्सानियत ज़िंदा है
सुनकर कहानी उसकी
हो गई है आंखें नम सबकी
है बची अभी भी इन्सानियत
कर रही नम आंखें तसदीक इसकी
लगती है जितनी बुरी
ये दुनिया उतनी बुरी है नहीं
अच्छे लोगों से भरी है
अभी इंसानियत मरी है नहीं
बूढ़ी आंखों की उम्मीद की कहानी
हमें आज उसके पोते ने है सुनाई
कर रहा इस उम्र में भी श्रम वो
कहानी नहीं, है ज़िंदगी की सच्चाई
कर रहा मेहनत पोता भी
है आज उसकी मंज़िल करीब आई
है आंसू दोनों की आंखों में आज
क्योंकि खुशियों की घड़ियां है जो आई
है हकीकत इतनी मार्मिक
हर कोई अपने आसूं पोंछ रहा है
है जिंदा करुणा अभी भी
इस बात की तसदीक कर रहा है
रहा होगा संघर्ष कितना उसका
बिन मां बाप के बच्चे को पालने में
उम्र के इस पड़ाव में आकर भी
जिम्मेदारियों का ये बोझ उठाने में
चल रही है दुनिया ऐसे ही त्याग
और अनुराग की बदौलत आज
हरा रही है नफरत और अविश्वास
के पनपे हुए राक्षसों को वो आज।