इंसानियत को श्रद्धांजलि
बरपाया जो प्रकृति ने कहर उसे बर्बरता का नाम दे रहे हैं,
और किया जो इंसानों ने इसके साथ उसे विकास का नाम दे रहे हैं,
इंसानियत को ताक पर रख हम इच्छाएं अपनी पूरी करते हैं,
पर बेजुबान की तकलीफ पर उन्हें ख़ामोशी की सलाह देते हैं,
नींद खुलती जब हमारी तो हाय हाय खूब मचाते हैं,
पर उसी नींद को पाने के लिए कई बेजुबान को ख़ामोश कर देते है,
सताकर उन बेजुबानों को उनके सब्र की परीक्षा लेते हैं,
टूटता जब सब्र का बांध उनका तो उन्हें खूंखार और भावहीन का नाम देते हैं,
अपने ऐश ओ आराम के लिए उनका आशियाना बिगाड़ते हैं,
और भटकते जब वो अंजान राहों में तो उन्हें मौत के घाट उतारते हैं,
क्या कसूर बस उतना इनका कि वो कुछ बयां न कर पाते हैं,
पर दर्द तकलीफ में आंसू उनकी आंखो से भी बहुत निकलते हैं,
दो पल की खुशी के लिए तुम जिनको इतना तड़पाते और सताते हो,
फिर रोते हो तुम खुद जब उसका पलटवार खुदा से पाते हो,