इंसानियत का क़र्ज़
मुल्क की हिफ़ाज़त,
अवाम की खिदमत!
और क्या होता है
एक शायर का फ़र्ज़!!
वक़्त के जलते हुए
मुद्दों पर नज़्म कहकर!
हम चुका रहे हैं
इंसानियत का क़र्ज़!!
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