इंसानियत का आग़ाज़
व़क्त बदलते ही हाल़ात बदलते हैं ,
हाल़ात बदलते हैं माहौल़ बदलते हैं ,
माहौल़ बदलते ही ए़हसास बदलते हैं ,
ए़हसास बदलते ही जज़्बात बदलते हैं ,
जज़्बात बदलते ही रिश़्ते बदलते हैं ,
रिश़्ते बदलते ही हम़राह बदलते हैं ,
हमराह बदलते ही हमसफ़र बदलते हैं ,
हमसफ़र बदलते ही मंज़िंलें बदलती हैं ,
मंज़िंलें बदलते ही नस़ीब बदलते हैं ,
नस़ीब बदलते ही सोच बदलती है ,
सोच बदलते ही इल्म़ बदलते है ,
इल्म़ बदलते ही इंसान बदलते हैं ,
इंसान बदलते ही ज़िंदगी के माय़ने बदलते हैं ,
ज़िंदगी के माय़ने बदलते ही ज़िंदगी बदलती है ,
और इस बदलती ज़िंदगी में ,
हमदर्दी के उफ़क से
इंसानिय़त के ऩूर का आग़़ाज़ होता है।