इंद्रधनुषी प्रेम
जाने क्यों पतंगा दीए से
करता इतना प्यार है!
पहले आलिंगन मात्र में ही
उसे अपनी मृत्यु स्वीकार है।
बलखाती अल्हड़ सी नदी
प्रेम सागर से निभाती है ।
त्याग के अपने मिठास सारे
सागर से खारी बन जाती है।
गहरे पानी के सागर को भी
क्यों साहिल से इतना प्यार है,
बार-बार ठुकराने पर भी
किनारों से मिलने को बेकरार है।
धरती – अंबर की प्रेम कहानी
इंद्रधनुष में दिखता है,
दूर कहीं क्षितिज में जाकर
बारिश की बूंद में मिलता है।
लक्ष्मी वर्मा ‘ प्रतीक्षा’
खरियार रोड, ओड़िशा ।