“इंतज़ार”
कतरा-कतरा टूट कर गिरा,
अब मैं सूनी हो गयी ,
नि:शब्द -शब्द गूंज कर गिरा,
मैं खुश्क और श्वेत हो गयी,
राह तकी बरसों मैने,
गोद गीली हो गयी,
जाने कितनी शामें थकी हुयी,
हाय! तेरी याद में ……,
रात भारी हो गयी
आयेगी वो सुबह कभी,
इसी इंतज़ार में ………,
आंखें मेरी पत्थर हो गयी|
……निधि…