इंतिज़ार
माहौल कुछ इस कदर है जिसमें
इंसानियत ना- क़द्र है,
सिसकती जिंदगियों पर
हैवानियत का कहर है,
जब्र-ए-मुसलसल तसरीफ़ -ए – अय्याम भारी है ,
जुनून- ए – वहशियत हर सम्त तारी है ,
ना जाने कब खत्म होगा ये सिलसिला ?
जब उरूज़ होगा अमन-ओ – इंसाफ के उफ़क से
इस ग़म -ए – ज़िदगानी का सिला ।