इंटर वाला बैच..
कितने क्लास पढ़े हैं देखो, नहीं मिला है मैच
याद बहुत आता है हमको, इंटर वाला बैच
बेंच तीन की और बैठते, पांच पांच मिल यार
टॉयलेट लगती एक दोस्त को, जाते सँग में चार
क्लास रूम में बस फेमस थी, पीछे वाली सीट
बिन गाली के बात न कोई, होती थी कंप्लीट
मगर दोस्ती में ना आई, कभी एक भी स्क्रैच
एक रजिस्टर में ही होते, लिखे सभी सब्जेक्ट
मस्ती और चुहलबाजी में, लड़के सब परफेक्ट
सारे दिन में लंच ब्रेक ही, होता सबसे खास
भूख लगे तो रुपए इकट्ठा, होते जहां पचास
आते गरमागरम समोसे, मचती खैंचम खैंच
ड्रेसिंग सेंस हेयर स्टाइल, हर फैशन में कूल
कोड वर्ड में नाम बुलाना, था लड़कों का रूल
ऊपर से दिखते थे जाहिल, पर भीतर से नेक
पढ़ने में थे भले फिसड्डी, आशिक सब दिलफेंक
प्यार मोहब्बत और इश्क में, सबके ढीले पेंच
जी सी आर तरफ लगते थे, चक्कर सबके रोज
मौका मिलता नहीं किसी को, कैसे करें प्रपोज
मोबाइल का दौर नहीं था, चिट्ठी वाला प्यार
कागज के ही प्लेन उड़ाकर, होता था इजहार
हर लड़के का इक लड़की से, दिल था यहां अटैच
शर्ट फिटिंग की और कमर पर, अटकी ढीली जींस
अपना ही रौला कालेज में, हम कॉलेज के प्रिंस
आंखों पर चश्मा कॉलर पर, बांधे हुए रुमाल
क्लास बंक करके जाते थे, सभी सिनेमा हॉल
वो क्रिकेट का हल्ला गुल्ला,वो सिक्सर वो कैच..!!