इंटरव्यू
आज कॉलेज में एक कंपनी आने वाली है। हफ्ते भर पहले से ही बहुत जोर – शोर से तैयारियां हो रही थी। ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट सेल ने तो पूरे कॉलेज में ये ऐलान करा दिया था कि हर एक विद्यार्थी को इसमें भाग लेना है। पढ़ने के लिए बहुत सारे विकल्प और नोट्स दिए गए थे, और आज वो दिन आ ही गया जब हमारी कक्षा के हर विद्यार्थी को अपना परिचय देने जाना है।
मैं अपने घर में बैठ के आराम से निश्चिन्त होकर अपनी ही धुन में थी तभी मेरा फ़ोन बजता है। मन नहीं था फिर भी मैंने उसमे देखा की अरे! यह तो मेरी घनिष्ठ मित्र का नंबर है। उत्सुकतावश मैंने बोला, “हेलो, कैसे याद किया ?”
उसने बड़े ही अच्छे भाव से कहा, कहाँ है तू? इंटरव्यू नहीं देना क्या?
मैंने बड़े मुस्कुराते हुए कहा नहीं मुझे इस कंपनी में नहीं जाना।
तब वह निराश सी हुई और बोली, “अच्छा चल तो अब तू मेरी सहायता करा दे।”
मैंने बड़ी ही सन्तावना देते हुए कहा- “हाँ क्यों नहीं, आखिर मैं तेरे लेया इतना तो कर ही सकती हूँ।
उसके बाद समय ऐसे ही काट गया और अब दोपहर के तीन बजने को थे। वो बार बार मुझे फ़ोन करती बताती की वो कितना डरी हुई है। मई उसे समझाती की बेफिक्र रह सब अच्छा होगा।
अब उसका फिर से फ़ोन आया और इस बार उसने मुझे बताया की युग सर आये है और उनके साथ दो साथी और भी है। इस नाम में अलग ही कसक थी और इसको सुन कर मैं अब से एक साल पहले की समृतियो में चली गईं।
उस दिन वह और इनके दो साथी आये थे। हमसे एक साल आगे जो विद्यार्थी थे उनका इंटरव्यू लेने। समय का फेर देखो उस साल मैंने सारा कार्यक्रम का आयोजन किया था। और आज मैं ही नहीं जा रही। एकदम से सब यादे ताज़ा हो गयी। उस एक दिन में मेरी उनसे इतनी बात हो गई थी कि वे अपनी हर जरुरत और काम के लिए पहले मेरे से बताते और फिर मैं जाकर अध्यापकों को। मैं वहाँ अकेले थी जो उनके हर काम में सहयोग दे रही थी। वह सब मुझसे अत्यंत प्रभावित हो गए थे। उसके बाद अब तक एक बार ही मेरी सर से बात हो पाई थी।
पता नहीं क्या ख्याल आया पर मैं एकदम से उठी और कॉलेज के लिए रवाना हो गयी।
असमंजस में थी मैं कि क्या उनको मैं याद हूँ? क्या वो मुझे पहचानेगे ?
मुझे वो नौकरी नहीं चाहिए मुझे तो बस उन सब से मिलना था।
जैसे तैसे मैं कॉलेज पहुंच ही गयी। अब बस मुझे मेरी बारी का इंतज़ार था। मेरे सहपाठी डरे सहमे से क्या पूछा और क्या बताया का ज़िक्र कर रहे थे और मुझे तो बस उन सब से मिलना था.
इंतज़ार ख़तम हुआ आखिर मेरा नाम पुकारा गया।
मेने हलके से दरवाजा खोला और उनको कहा , “गुड इवनिंग” क्या मैं अंदर जाऊ?
मेरी दो सहपाठी जिसमे मेरी मित्र भी थी उन सर क साथ बैठ केर उनके जवाब दे रही थी। दोनों के मुख से साफ़ नज़र आ रहा था की उनकी हालत ऐसी है जैसे एक बिल्ली के सामने चुहे की।
दरवाजा खोलते ही वो मुझे पहचान गए और मेरा स्वागत करते हुए बोले, “अरे कोर्डिनेटर साहब आइये आपको पूछने की क्या जरुरत है। तुमने ही पिछले साल हमारा सहयोग किया था। तुमसे मिलकर बहोत ख़ुशी हुई।”
उस समय मेरा मन प्रफ्फुल्लित हो उठा। आज जब मेरे सहपाठी अपना परिचय डरते हुए दे रहे थे तब उन्होंने स्वयं मेरा परिचय देते हुए स्वागत किया। मेरे कॉलेज में बहुत सी सोसाइटी थी लेकिन मेरा नाम उन में से किसी में ना ना आकर ट्रेनिंग और प्लेसमेंट में आया था। तब मई बहुत निराश हुई लेकिन आज इस इंटरव्यू ने मुझे एहसास दिला दिया था की ईश्वर जो करते है अच्छ के लिए करते है। आज इतना गर्वान्वित हो उठी मैं जैसे कोई बरसो बाद जीत मिली हो। और वह इंटरव्यू मेरी खुद से मुलाकात करा गया।
-खुशबू गोस्वामी