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12 Oct 2019 · 1 min read

इंकलाब

बंट रहे थे पर्चे सब उसकी मर्ज़ी है
बस रब को ऐसे ही माना जाये।

हम गिर पड़े हैं चलते-चलते चोट खाकर
क्या इसको भी उसकी रज़ा ही जाना जाये।

नूरे खुदा के इश्क में जब आंखे मर जाये, फिर
इंकलाब के इश्क़ को ही बेहतर क्यूँ न माना जाये।
…सिद्धार्थ

Language: Hindi
4 Likes · 351 Views
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