इंकलाब
बंट रहे थे पर्चे सब उसकी मर्ज़ी है
बस रब को ऐसे ही माना जाये।
हम गिर पड़े हैं चलते-चलते चोट खाकर
क्या इसको भी उसकी रज़ा ही जाना जाये।
नूरे खुदा के इश्क में जब आंखे मर जाये, फिर
इंकलाब के इश्क़ को ही बेहतर क्यूँ न माना जाये।
…सिद्धार्थ
बंट रहे थे पर्चे सब उसकी मर्ज़ी है
बस रब को ऐसे ही माना जाये।
हम गिर पड़े हैं चलते-चलते चोट खाकर
क्या इसको भी उसकी रज़ा ही जाना जाये।
नूरे खुदा के इश्क में जब आंखे मर जाये, फिर
इंकलाब के इश्क़ को ही बेहतर क्यूँ न माना जाये।
…सिद्धार्थ