इंकलाब गाना होगा
साथ गर्जना करने को अब ,
सबको मिलकर आना होगा ।
नीला शेर बने जो गीदड़,
इंकलाब ही गाना होगा ।
घास पात बन कर कब तक तुम ,
भेड़ों की भूख मिटाओगे ।
काटे जाओगे या फिर तुम ,
घोड़ों से रौंदे जाओगे ॥
मेड़ खेत की छोड़ निकलकर ,
अब संसद में जाना होगा . .
खुरपी, हँसिया और फावड़े ,
कहाँ जालिमों से लड़ते हैं ।
जो मौकों को ही पढ़तें हैं ,
नव इतिहास वहीं गढ़तें हैं ॥
अन्तर खून पसीने की कर ,
अब देख समर लाना होगा।
लोहा लकड़ी, चमड़े का यूँ,
तुम ही क्यों रोजगार करो।
वहीं खून है वहीं हड्डियाँ,
बुद्धि को बस साकार करो।
शोषण से यदि मुक्त है होना,
कलम को अस्त्र बनाना होगा..।