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31 Aug 2021 · 2 min read

इंकलाब,आतंकवाद के विरुद्ध

एक सवाल, आतंकवाद के विरुद्ध

एक सवाल आतंकवाद के विरुद्ध,
कर रहा हूँ मैं आज,
बता, तेरे लब क्यों सिले हुए हैं आज ?
मचा था कुहराम कश्मीर में,
मर्यादा मानव जाति का,
हुआ था तार-तार खुलेआम कश्मीर में।
मजहब की लिबास ओढ़कर आतंकी,
इस कदर काट रहे थे इंसानों को,
जैसे कि कोई कुतर रहा हो रसोई में सब्जियों को।
भागो बीबी-बच्चे छोड़कर ,
ऐसा ही कुछ ऐलान हुआ था।
मानव रक्त में पके चावल से ,
जठराग्नि विजयोल्लास मना था ।
नफ़रत की धधकी ज्वाला में,
सबकुछ जलकर खाक हुआ था।
फिर भी तेरा लब ना फड़का,
ना कोई इंकलाब हुआ था।
फिजा वहीं है,वही साजिशें,
मानवता लहुलुहान हुई है,
फिर भी कोई आहट न दस्तक ,
ना कोई फरियाद है आज !
बता, तेरे लब क्यों सिले हुए है आज ?

दफन हुई है मानवता की खुशबू,
मकसद उनका कुछ और था ।
तुम उलझे रहे निज स्वार्थ हितों में,
उसने सत्ता संग्राम किया था।
छेड़ जिहाद का राग विश्व में,
लोकतंत्र को दफन किया है।
आँख फाड़ बस देखा है तुमने,
आतंकियों का खूनी तांडव आज।
मन मसोसकर सह लिया तुमने,
अक्षरधाम हो या होटल ताज।
बता कि तेरे लब कब होंगे आज़ाद ?

देख पड़ोस में पाठान हृदय को,
किस कदर पाषाण हुआ है।
अफगानियों पर वहशी कब्जा,
मजहब को बदनाम किया है।
ये तो अपना गांधार प्रदेश था,
कितना इसका तिरस्कार हुआ है।
शरिया कानून लागू कर फिर से,
महिलाओं को शर्मसार किया है।
मजहब के नाम हो रहा कत्लेआम ,
अब वो एक नासूर बना है।
बदकिस्मती भारत का देखो,
सत्तास्वार्थ में अंधे गद्दारों को,
तालिबान में भी ईमान दिखा है ।
सबक नहीं सीखा है हमने,
खिलाफत मुहिम हो या जिहाद।
जात पात में उलझे यदि अब भी ,
तब न बचेगा कोई स्वराज ।
बता, तेरे लब क्यों सिले हुए है आज ?

बता, तेरे लब क्यों सिले हुए है आज ?

मौलिक एवं स्वरचित

© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – ३१ /०८/२०२१
मोबाइल न. – 8757227201

Language: Hindi
6 Likes · 6 Comments · 1749 Views
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