आ ही तक याद है
पूर्णिका
************************(
******* अभी तक याद है *******
****************************
हमें बीता जमाना अभी तक याद है।
मंद मंद मुस्कराना अभी तक याद है।
हया में पलकें झुका चोरी से ताकना,
होठों को दबाना अभी तक याद है।
हवा के साथ-साथ लटों को खोलना,
खुले केश सुखाना अभी तक याद है।
हटे कभी भी न नज़र चेहरा चाँद सा,
मुखड़ा मस्ताना अभी तक याद है।
तेरे कूचों से गुजरता रहा मनसीरत,
बहाने से बुलाना अभी तक याद है।
*****************************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)