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26 May 2024 · 2 min read

आ मिल कर साथ चलते हैं….!

” आ मिल कर साथ चलते हैं….
इस राह (जिंदगी ) पर… !
चल कुछ नव-निर्माण करते हैं…
इस राह पर….!
कौन जाने..? इस सफ़र का…
है अंत कहाँ…..!
आज साथ-साथ हैं…
न जाने कल तुम कहाँ.. और मैं कहाँ….!
आ बना लेते हैं आज, आशियाना एक…
किनारे में पड़ी ,
कुछ तिनके तुम ले आना…!
ढेरों से कुछ मुट्ठीभर मिट्टी,
मैं ले आऊंगा…
मिलकर दोनों उसे ,
एक आकार दे देंगे…!
मन में बनी है तस्वीरें कुछ…
उसमें रंग भर देंगे अमिट…!
और है जो सपने अपने…,
उसे इस जहां में, परवाज़ दे देंगे…!
सारथी चाहे कोई भी हो अपना…
पहिया बनकर हम चलेंगे…!
आ मिलकर साथ चलेंगे…,
इस राह में…
कठिन परिस्थितियों में भी…
‘ ये हौंसला ‘ बनकर रहेगा.. ,
सिर का ताज…!! ”

“अपनी जिंदगी से, टटोल तुम…
कुछ सपने चुन लेना….!
मेरे ख्वाहिशों के किताब में…
उसे संजों लेंगे….!
कर इरादे मजबूत…
हम साकार उसे , कर लेंगे….!
अगर…
होंगे कड़वाहट कोई, जिंदगी में….
कुछ घूंट, तुम पी लेना…
और कुछ घूंट मैं पी लूंगा…!
‘ वक़्त ‘ हाथों से कब निकल जायेगा…!
पहिये लगे हैं, इनके पांवों में…;
रोकना इसे,
न मेरे वश में है, न तेरे…!
बस.. इनके तक़ाज़ों को…
आ पहचान लें…!
न जाने कब लिबास बदल जाए…
किस्मत के…!
आ इस पल को…
जरा पहचान लें…!! ”
” इस राह की गलियों में…
अनेक मोड़ आयेंगे..!
कई चौराहे मिल जायेंगे…
हम कहीं भटक भी जायेंगे…!
आ हम साथ चलते हैं…
अपनी अटूट इरादों से…
अपनी अनुभवों की साझेदारी से…!
विपरीत बहती अपनी…
उन हवाओं के, रुख बदल देते हैं…!
चलते-चलते इस राह पर…
जब कदम अपने लड़खड़ायेंगे…!
जब पांव अपने थक जायेंगे….!
हाथों की उंगलियों से…,
जब कुछ न कर पायेंगे…!
तन्हाइयों की बेड़ियों में…,
जब जकड़ा जायेंगे..!
तब….
गुज़रे उस पल की…!
उस कल की…!!
यादों को…,
मरहम बना ,
अपने ‘आप ‘ को पुनः, संवार जायेंगे…!!
ओ मीत मेरे…!
आ साथ चलते हैं.. ,
इस राह पर….!
चलकर कुछ नव-निर्माण करते हैं.. ,
इस राह पर…!! ”

************∆∆∆************

Language: Hindi
40 Views
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