आ जी लें ज़रा
आ जी लें ज़रा
भूल कर इस जहां के सारे गम आ जी ले जरा
जख्म बहुत है इस सीने में आ सी ले जरा
सहम गया देख कर इतने सितम मुझको इन बाहों में सुला ले जरा
बरसों से तड़प रहा दिल तेरे प्यार में तेरे इंतजार में अब ना
तड़पा मुझे बुला ले जरा
अब डरता हूं तुझसे बिछड़ने से जीना चाहता बस तेरे संग ही
तो भी मुझे महसूस कर ले जरा
कहते हैं लोग दिल की बातें हैं बड़ी निराली तू भी इन
बातों को सीख ले जरा
कितना तनहा हूं तेरे बिना आकर मेरी इस तन्हाई को
दूर कर दे ज़रा
दिल पुकारता है तुझे बार-बार तू भी इस दिल में घर कर ले जरा
न जाना फिर यहां से कभी यही ठहर जा ज़रा
ना हो फिर कभी जुदा यह वादा कर ले जरा
भूल के इस जहां के सारे गम आ जी ले जरा ||
‘कविता चौहान ‘