आ गये पास मेरे
आ गये जब पास मेरे वो हिचकिचाये भी नहीं
दर्द दास्तां को सुना तब वो लजाए भी नहीं
प्यार में पागल हुए है हम न शरमाए कभी
भूल फिर हमसे हुई तब बडबडाए भी नहीं
सोच कर दिल रो रहा ठुकरा दिया तूने हमें
छोड़ तुझको दिल पे कोई और छाए भी नहीं
उस खुदा को आप में हमने हमेशा पा लिया
इसलिये तो सोच के हम आजमाए भी नहीं
छांव बन के मैं चलूँ , रग में बसू तेरी अभी
रात मेरे साथ फिर क्यों जगमगाए भी नहीं
ताप दिल का दूर होता बाँसुरी गर बनते तुम
बन सुरों की सरगमें तुम गुनगुनाए भी नहीं
गीत तेरी प्रीत के गाती रही हूँ आज भी
खत लिखे चाहत भरे जो वो जलाए भी नहीं
डॉ मधु त्रिवेदी