आ गई है ऋतु बसंती यार फिर से!
गज़ल
आ गई है ऋतु बसंती यार फिर से!
कर रही है ये धरा श्रंगार फिर से!
गुनगुनाते हैं भ्रमर कोयल भी् बोले,
फूल कहते यार करले प्यार फिर से!
पाक हो या चीन हो मत कर भरोसा,
क्या पता कब तोड़ दें गद्दार फिर से!
इश्क़ मे धोखा मिला जो भूल जाओ,
प्यार का करलो कहीं इजहार फिर से!
पट्टियाँ आंखों पे ताले हैं जुबां पर,
सच नहीं लिख पारहे अखबार फिर से!
घर मे् चोरी हो गई सब बेखबर हैं,
शक के् घेरे में है् चोकीदार फिर से!
प्यार से भरता नहीं प्रेमी का् दिल,
बस यही कहता रहा इकबार फिर से!
….. ✍ प्रेमी