——आ कहीं दूर चले——–
आ कहीं दूर चले
सात समंदर दूर नगरी पार चलें आ कहीं दूर चले
जहां प्यार हो , उठती लहरें सूरज की किरण दीदार करें
आ कहीं दूर चले
तेरी अंखियों में देखूं दुनिया तेरे संग हो सारी खुशियां
एक ऐसा संसार चलें आ कहीं दूर चले
दूर तक खामोश हो रास्ते सारे बस तेरा मेरा प्रीत प्यार
चले आ कहीं दूर चले
चल बनाएं सपनों की नगरी हर ख्वाहिश हो जहां पूरी
एक ऐसा वरदान चले आ कहीं दूर चले
ना कोई तेरा ना कोई मेरा बस हमारा अधिकार चले
आ कहीं दूर चले
देखें चल एक सुनहरा सपना हर एक पल हो सुंदर
अपना इन हवाओं- में बह चलें आ कहीं दूर चले ||
‘कविता चौहान’
स्वरचित एवं मौलिक