आ अब लौट चले उस गाँव
आ अब लौट चले उस गाँव।
जहाँ माँ के आँचल की छाँव।।
करघा, आँगन बैठ के माँ,
सपने बुनती है बेटे तेरे।
जीवन के दिन चार रहे,
खुश, हर पहर सांझ सबेरे।
आ चले शहर से अपने गाँव।।
जहाँ माँ …………… छाँव।।
दादा-दादी पंती खातिर,
रहे है अपनी साँस सम्हाल।
आएगा नाती, पंती लेके,
तब गाँव मे होगी धमाल
आ चले खाट की ठाँव।।
जहां माँ ….. .. .. छाँव।।
पनिहारिन ले ठंडा पानी,
पनघट पर गीत गाती हैं।
सास बहू भी बन सहेली,
हर रश्म-रिवाज निभाती है।
आ चले पीपल की छाँव।।
जहाँ माँ …….. …. छाँव।।
उठ भुनसारे कुक्कड़ बोले,
श्वान भी वफादारी निभाता है।
हरा-भरा खेत, आँगन गाय,
देख, कृषक झूम गाता है।।
चल सुनने कौए की काँव।।
जहाँ माँ ……. ….. छाँव।।
संतोष बरमैया “जय”