आज़ाद गज़ल
दिमागी दिवालियेपन की हद है
ख्वाबों में जीने की जो आदत है ।
इमानदारी से मेहनत के बगैर ही
चाह बेशुमार दौलत की बेहद है ।
हश्र पता है सबको अपना मगर
अपनी नज़रों में सब सिकंदर है ।
नंगापन,ओछापन, बदजुबानी ही
शोहरत के लिए अब ज़रूरत है ।
रखकर तहजीबों को ताक पर
करते बुजुर्गो से रोज बगावत है ।
क्या करेगा अजय तू चीख कर
सुनता कौन तेरी यहाँ नसीहत है ।
-अजय प्रसाद