आज़ाद गज़ल
या रब कुछ तो आसान कर
सबको गमों से अन्जान कर ।
ज़िंदगीयाँ हैं जिनकी बेरहम
उनको अपना मेहमान कर ।
रोने को अब आसूँ भी नहीं
आंखों पर भी एहसान कर ।
मेरी तो कोई सुनता ही नहीं
ज़ारी तू अच्छी फरमान कर ।
जैसे अता की है खुबसूरती
खुबसूरत और ये जहान कर ।
थक चुके हैं लोग इवादत से
कुछ तो इधर भी ध्यान कर ।
कब तलक रहेगा यही चलन
अब तो धरती आसमान कर ।
-अजय प्रसाद